मेरा हृदय ठोस है
मगर उसमें द्रव भरा है
यह द्रव उसके होंठों के रंग से गहरा है
मैं द्रव नहीं हो सकता
क्योंकि मुझ पर एक जिस्म का मोमजामा है
जिसके आर-पार ऊष्मा नहीं जाती,
लेकिन मैं द्रवित हो सकता हूँ
और बहुत से मौक़ों पर होता भी हूँ
मेरे भीतर एक भट्टी है
जो अवसर पाते ही सुलग उठती है।

मेरी आँखों को कोई ब्रह्माण्ड मानता है
जबसे मुझे यह ज्ञात हुआ
तब से मेरी दायीं आँख का आईरिश
मेरे लिए पृथ्वी हो गया है
और वह घूमता है उसकी गलियों में
और बायीं आँख का
उसके इशारों पर लट्टू की तरह।

तलवों के लिए लोग
जूतों की अच्छी दुकान खोजते हैं
मेरे जूते मेरे हमक़दम बनकर
उसके तलवे खोजते हैं
प्रेम में आदमी विचित्र हो जाता है
वह क्यों लोगों के लिए
मनोरंजक चलचित्र हो जाता है?

जिस तरह नयी कोशिकाएँ पुरानी को
आगे ठेलती रहतीं हैं
नये उगे दर्द, पुराने को ठेलते रहते हैं
यह सब आसान नहीं है
शरीर-क्रिया की तरह
प्रेम भी एक जटिल तंत्र है
पर वह स्वायत्त है, स्वतंत्र है।

राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]