सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बे-हिस ओ बे-जान सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है

शहरयार
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फ़रवरी २०१२), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे।