Tag: Book Excerpt
दीवार में एक खिड़की रहती थी
किताब अंश: 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' - विनोद कुमार शुक्ल
विभागाध्यक्ष से रघुवर प्रसाद ने बात की, "महाविद्यालय आने में कठिनाई होती है...
क्यों बीरसा मुण्डा ने कहा था कि वह भगवान है?
बीरसा मुण्डा, जिसके पूर्वज जंगल के आदि पुरुष थे और जिन्होंने जंगल में जीवन को बसाया था, आज वही बीरसा और उसका समुदाय जंगल की धरती, पेड़, फूल, फल, कंद और संगीत से बेदखल कर दिया गया है! उनके पास खाने को नमक नहीं, लगाने को तेल नहीं, पहनने को कपड़ा नहीं! जमींदार और महाजनों के कर्जों में डूबी यह जाति खुद को मुण्डा कहलाने में भी शर्म महसूस करती है। सदियों के दमन ने उन्हें विश्वास दिला दिया है कि मुण्डाओं का तो जीवन ही है इस श्राप को भोगते रहना। और नए कानूनों के चलते, किस्मत, अंधविश्वासों और टोन-टोटकों में फँसा यह समुदाय जंगल के कठोर जीवन में रहने के लायक भी नहीं रहा। ऐसे में बीरसा, एक छोटी उम्र का नौजवान मिशन के स्कूल में थोड़ा पढ़कर, बंसी बजाकर, नाच-गाकर एक दिन खुद को इस समुदाय का भगवान घोषित कर देता है, और मुण्डा लोग उसे भगवान मानने लगते हैं, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि एक दिन भगवान मुण्डाओं में ही जन्म लेगा और उनका उद्धार करेगा।
बीरसा ने - जिसकी अपने समुदाय के अधिकारों व स्वाभिमान के लिए लड़ने के कारण अंग्रेजों द्वारा एक साजिश के तहत पच्चीस साल की छोटी उम्र में हत्या कर दी जाती है - ऐसा क्यों किया और ऐसा करने से उसे क्या मिला, इसकी एक समझ मिलती है महाश्वेता देवी के उपन्यास 'जंगल के दावेदार' के इस अंश से! ज़रूर पढ़िए!
कस्तूरबा की रहस्यमयी डायरी
नीलिमा डालमिया की यह किताब, ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित कस्तूरबा गाँधी की एक कल्पित डायरी है, जो कस्तूरबा गाँधी के जीवन पर प्रकाश डालने के...
‘वो विल (will) करेगी ही नहीं, जब करेगी वोंट (won’t) करेगी’ – ‘हीरा फेरी’...
"एक फ्रांसिसी साहब अपनी तमाम चल अचल संपत्ति एक ऐसी महिला के नाम कर के मरे जिस ने बीस साल पहले उन से शादी करने से इनकार कर दिया था।
क्यों?
क्योंकि उस इंकार की वजह से कुंआरे रहकर जो ज़िन्दगी का तुल्फ उठाया, जो भरपूर मौजमेला किया, जो खुदमुख्तारी और आज़ादी उन्होंने एन्जाय की, वो वो शादी कर लेते तो कभी न भोग पाते।"
अपराध लेखन में विल यानी वसीयत एक पॉपुलर और उपयोगी एलिमेंट है किसी भी लेखक के लिए। इसी एलिमेंट पर सुरेन्द्र मोहन पाठक की किताब 'हीरा फेरी' में एक बड़ा ही रोचक और पठनीय अंश है जो आज यहाँ प्रस्तुत है। पढ़ कर देखिए :)
मौलवीजी, आपाँ चले! (ज़िन्दगीनामा से)
मौलवीजी ने फत्ते को बाहर झांकते देखा तो आवाज़ दे दी- "फत्तया, दर्रों के नाम गिना!"
"खैबर, ख़ुर्रम, टोची, गोमल और जी रब्ब आपका भला करे, ईरान!"
"ईरान कि 'बोलान'?"
फत्ते को जाने की जल्दी थी सो लापरवाही से कहा- "अहो जी, कुछ भी हो हमारी तरफ से! अब छुट्टी कर दो! घर पहुँचते बनें। आसमान देखो। अंधेर घुप्प घेंर!"