Tag: Democracy
मदारी का लोकतन्त्र
वो किसी
धूर्त मदारी की तरह
वादों की डुगडुगी
बजाते हुए
पीटते हैं ताली,
टटोलते हैं
हमारी जेबें,
तोड़ते हैं
आज़ाद क़लमें,
जाँचते हैं
हमारे शब्द,
सूँघते हैं
हमारी थालियाँ,
बाँटते हैं
हमारे त्यौहार,
बदल देते हैं
इतिहास की किताब,
गिनते हैं...
सुनो दारोग़ा
सुनो दारोग़ा,
मैं एक गुमशुदा की
रपट लिखाना चाहता हूँ—
नाम?
लोकतंत्र।
पूरा नाम?
रोटी, कपड़ा और मकान।
रंग?
गहरा लाल ख़ून।
पता?
हाकिम की रैली।
कब से लापता है?
सन् सैतालिस की रात से।
किसी पर...
क्षणिकाएँ : मदन डागा
कुर्सी
कुर्सी
पहले कुर्सी थी
फ़क़त कुर्सी,
फिर सीढ़ी बनी
और अब
हो गई है पालना,
ज़रा होश से सम्भालना!
भूख से नहीं मरते
हमारे देश में
आधे से अधिक लोग
ग़रीबी की रेखा के...
नया शब्दकोश
कुछ तो है भीतर बेरंग बादल-सा
उमड़ता, घुमड़ता, गहराता, डराता
मैं ख़ुद की दहशत में हूँ
बेहद शान्त, भयभीत
जैसे कोई हारा हुआ खिलाड़ी
जैसे कोई ट्रेन से छूटा हुआ...
गौरव भारती की कविताएँ
कील
एक साल
तीन सौ पैंसठ दिन
पूरे आठ हज़ार सात सौ साठ घण्टे
एक कील के सहारे
दीवार पर टंगे हुए हैं
मेरे साथियों
आओ, मुझे तपाओ
आग की भट्ठी में...
ज़िन्दगी
देश की छाती दरकते देखता हूँ!
थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को,
पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ!
सत्य के जारज सुतों को,
लंदनी गौरांग प्रभु...
‘प्रजातंत्र का अर्थ मात्र चुनाव कराना नहीं है’
बाबासाहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर की किताब 'हिन्दू धर्म की रिडल' से किताब अंश | Book Excerpt from 'Riddles in Hinduism', a book by Babasaheb...
भीड़
'Bheed', a poem by Adarsh Bhushan
भीड़ ने
सिर्फ़
भिड़ना सीखा है,
दस्तक तो
सवाल देते हैं
भूखी जून के
अंधे बस्त के
टूटे विश्वास के
लंगड़े तंत्र के
लाइलाज स्वप्न के-
कि इस बार
चुनाव...
अंकित कुमार भगत की कविताएँ
Poems: Ankit Kumar Bhagat
प्रतिरोध
काले गुलाब
और स्याह परछाइयों के बाद,
कालिख पुती दीवारें
इस दौर की विशेषताएँ हैं।
अँधेरा गहराता ही जाता है,
कि असहमतियों को आज़माने की
इजाज़त नहीं यहाँ।
विद्रोह...
आवाज़ें मरा नहीं करतीं
'Aawaazein Mara Nahi Karti', a poem by Suraj Taransh
तुम जला डालो
घास-फूस से बने हमारे घर को
एक तिनका बच ही जायेगा
जो बिंध जाएगा
तुम्हारी आँखों में...
सुलग...
बाज़
योगेश मिश्रा की कविता 'बाज़' | 'Baaz', a poem by Yogesh Mishra
एक बाज़ ने कब्ज़ाया है एक गाँव
जिसे बसाया था चिड़ियों ने
जिसमें रहते थे...
लिंचिंग
'Lynching', a poem by Anamika Anu
भीड़ से भिन्न था
तो क्या बुरा था
कबीर भी थे
अम्बेडकर भी थे
रवीन्द्रनाथ टैगोर भी थे
गाँधी की भीड़ कभी पैदा होती...