Tag: Hindi kavita

Kumar Ambuj

अकुशल

बटमारी, प्रेम और आजीविका के रास्तों से भी गुज़रना होता है और जैसा कि कहा गया है इसमें कोई सावधानी काम नहीं आती अकुशलता ही देती...
Kuber Dutt

हट जा… हट जा… हट जा

आम रास्ता ख़ास आदमी... हट जा, हट जा, हट जा, हट जा। ख़ास रास्ता आम आदमी हट जा, हट जा, हट जा, हट जा। धूल फाँक ले, गला बन्द कर, जिह्वा काट...
Atal Bihari Vajpayee Poem

हरी-हरी दूब पर

'Hari Hari Doob Par', a poem by Atal Bihari Vajpayee हरी-हरी दूब पर ओस की बूँदें अभी थी, अभी नहीं हैं। ऐसी खुशियाँ जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं...
Tree Branch, No Leaf, Autumn, Sad, Dry, Dead

सुबह की तलाश

"वे अपने आंगन में एक किरण उतारने एक गुलाब खिलाने की कला में हर बार चूक गये।"
Kushagra Adwaita

तीन कविताएँ

मेरे अंदर एक पागलखाना है मेरे अंदर एक पागलखाना है तरह-तरह के पागल हैं एक पागल हरदम बोलता ही रहता है, दूसरा पागल ख़ामोशी ओढ़े है बस नींद में...
Kunwar Narayan

सूर्योदय की प्रतीक्षा में

वे सूर्योदय की प्रतीक्षा में पश्चिम की ओर मुॅंह करके खड़े थे दूसरे दिन जब सूर्योदय हुआ तब भी वे पश्चिम की ओर मुॅंह करके खड़े थे जबकि सही दिशा-संकेत...
Muktibodh

शून्य

भीतर जो शून्य है उसका एक जबड़ा है जबड़े में माँस काट खाने के दाँत हैं; उनको खा जाएँगे, तुमको खा जाएँगे। भीतर का आदतन क्रोधी अभाव वह हमारा स्वभाव है, जबड़े...
Man Standing on a Hill Edge, Valley, Deep, Far Away

कहीं कभी

कहीं कभी सितारे अपने आपकी आवाज पा लेते हैं और आसपास उन्हें गुजरते छू लेते हैं... कहीं कभी रात घुल जाती है और मेरे जिगर के लाल-लाल गहरे रंग...
Vishnu Prabhakar

कड़वा सत्य

एक लम्बी मेज़ दूसरी लम्बी मेज़ तीसरी लम्बी मेज़ दीवारों से सटी पारदर्शी शीशेवाली अलमारियाँ मेज़ों के दोनों ओर बैठे हैं व्यक्ति पुरुष-स्त्रियाँ युवक-युवतियाँ बूढ़े-बूढ़ियाँ सब प्रसन्न हैं कम-से-कम अभिनय उनका इंगित करता...
Akanksha Gaur

रोटी

रोज़ सवेरे ऑफिस जाते वक़्त ट्रैफिक की लाल बत्ती पर गाड़ी रुकती थी रोज़ देखती थी मैं उस भीड़ में ज़िन्दगी से ज़द्दोज़हद करते लोगों को कहीं ऑटो...
Gaurav Adeeb

भोपाल में थोड़ा-थोड़ा कितना कुछ है।

भोपाल पर गौरव 'अदीब' की एक कविता भोपाल में थोड़ा-थोड़ा कितना कुछ है भोपाल में बहुत सारा लख़नऊ है यहाँ ऐशबाग है, हमीदिया रोड है यहाँ पुलिया है...
Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh

फूल और काँटा

हैं जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता। मेह उन...
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