Tag: Rambriksh Benipuri

Ramvriksh Benipuri

चरवाहा

"सूखे हुए नाले में एकाकी बगुला उदास खड़ा है। कटे हुए गेहूं के खेत में शून्यता ही शून्यता है, और, वह बड़े आनन्द से कडे की आगी में कोई चीज़ भून रहा है।"
Ship, Ganga, River Bank

जहाज़ जा रहा है

"जहाज के पेट में कोलाहल है, पीठ पर कोलाहल है। निचले हिस्से में थर्ड क्लास के यात्री खचाखच भरे हैं, ऊपर डेक पर कुछ सुफेदपोश बाबू चहलकदमी कर रहे हैं। यह जहाज नहीं जानता कि वह हमारे समाज का कितना सही प्रतिनिधित्व करता है, वह तो बढ़ा चला जा रहा है। यह क्या जल रही है? चिता, चिता, चिता? हाँ, तीन चितायें एक पक्ति में! लोग इतना मरते हैं? किन्तु, शायद आप जीवितों की गिनती भूल गये है। तो भी मरण कितना निठुर, जीवन कितना मधुर। और, जीवन-मरण दोनों से उदासीन वीतराग-सा यह जहाज चला जा रहा है।" शब्दचित्र यानी चित्र को खींचकर शब्दों में उकेर देना। इस शब्दचित्र के मध्य में है एक जहाज और बाकी सब आसपास। प्रत्येक पैराग्राफ में अत्यंत सुन्दर और सूक्ष्म चित्रण और सभी के अंत में 'जहाज जा रहा है...'
gehun aur gulaab - rambriksh benipuri

गेहूँ बनाम गुलाब

'गेहूँ बनाम गुलाब' - रामवृक्ष बेनीपुरी गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्‍त होता...
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