‘Udta Phirta Pagal Man Yeh’, a poem by Priyanki Mishra

उड़ता फिरता पगला मन ये,
हवा में लहराते किसी किशोरी के
करारे रंगों वाले बांधनी दुपट्टे की तरह,
क्या कर गुज़रना चाहता है छोटे-से वक़्त में,
पता नहीं।

खो जाना चाहता है कभी विराट नभ में,
पिंजरे से छूटकर, उदात्त फड़फड़ाते,
पंख फैलाये उड़ते हुए विहगों की तरह,
नापना चाहता है ऊँचाई शायद अम्बर की,
पता नहीं।

डूबना चाहता है पुस्तकों की भीड़ में,
मुँह फाड़े, बुलबुलाते, कमर लचकाते,
चमचमाते स्केल्स वाले किसी मीन की तरह,
बीनना चाहता है कुछ सीप शायद समंदर से,
पता नहीं।

भरना चाहता है कभी अपनी साँसों में,
बसंत बयार की परियाँ, मदमातीं,
इधर-उधर इठलाती रंगीन तितलियों की तरह,
चूस लेना चाहता है शायद ख़ुशबू परागों की,
पता नहीं।

सींचना चाहता है कभी नयनों के दरख़्तों में,
अमृतमयी प्रेम की बूँदों को, चमकते,
छँटी धुँध के बाद भोर की उजास की तरह,
रम जाना चाहता है प्रणय के असीम सुख में,
पता नहीं।

उड़ता फिरता पगला मन ये,
क्या कर गुज़रना चाहता है छोटे-से वक़्त में,
पता नहीं।