वह चिड़िया जो मेरे आँगन में चिल्लायी
मेरे सब पिछले जन्मों की
संगवारिनी-सी इस घर आयी;
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से!

हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए
हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया
हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं
हर पगडण्डी पर जिसने मुझको दुहराया
मैं उस चिड़िया को दुहराऊँ किन गानों से!

वह जो मेरी हर यात्रा में मेरे आगे डोली
अन्धकार में टेर पकड़कर जिसकी मैंने राह टटोली
जिसने मुझको हर घाटी में, हर घुमाव पर आवाज़ें दीं
जो मेरे मन की चुप्पी का डिम्ब फाड़कर मुझसे बोली
उसको वाणी दूँ? किस मुख? किन अनुमानों से?

वह जिसको मैंने अपनी हर धड़कन में महसूस किया है
वह जिसने नदियाँ जी हैं, आकाश जिए हैं, खेत जिया है
वह जो मेरे शब्द-शब्द में छिपी हुई है, बोल रही है
वह जिसने दे अमृत मुझे, मेरे अनुभव का ज़हर पिया है
मैं उसको उपमा दूँ, तो किस नीलकण्ठ, किन उपमानों से??

श्रीकान्त वर्मा की कविता 'जलसाघर'

Books by Shrikant Verma:

श्रीकान्त वर्मा
श्रीकांत वर्मा (18 सितम्बर 1931- 25 मई 1986) का जन्म बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। ये राजनीति से भी जुड़े थे तथा राज्यसभा के सदस्य रहे। 1957 में प्रकाशित 'भटका मेघ', 1967 में प्रकाशित 'मायादर्पण' और 'दिनारम्भ', 1973 में प्रकाशित 'जलसाघर' और 1984 में प्रकाशित 'मगध' इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। 'मगध' काव्य संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित हुये।