‘Ummeed’, a poem by Akhileshwar Pandey
रेत नदी की सहचर है
जो पत्ते चट्टानों पर गिरकर सूख रहे होते हैं
उन्हें अकेलेपन का नहीं,
हरेपन से बिछुड़ने का दुःख सता रहा होता है
नदी पुल की तरफ़ नहीं
नाव की तरफ़ देख रही होती है
प्रेम करने वाले जानते हैं
जहाँ से कोई नहीं आता
वहाँ से उम्मीद की आहट आती है
क्योंकि
आवाज़ कभी अकेली नहीं होती।
टेसू का टहटहा लालपन
जंगल की सालाना उम्मीद ही तो है
उसकी आवाज़ ख़ामोश बह रही नदी को छूकर महसूस की जा सकती है…।
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