चल पड़ी चुपचाप सन-सन-सन हवा,
डालियों को यों चिढ़ाने-सी लगी,
आँख की कलियाँ, अरी, खोलो ज़रा,
हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी,
पत्तियों की चुटकियाँ झट दीं बजा,
डालियाँ कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं,
किस परम आनंद-निधि के चरण पर,
विश्व-साँसें गीत गाने-सी लगीं,
जग उठा तरु-वृंद-जग, सुन घोषणा,
पंछियों में चहचहाट मच गई,
वायु का झोंका जहाँ आया वहाँ-
विश्व में क्यों सनसनाहट मच गई?