‘Visthapan Ke Antaravkash Mein’, a poem by Pranjal Rai
एक ख़ानाबदोश की अन्तहीन यात्रा-सी
ठौर दर ठौर
सरकती है ज़िंदगी
कि कुछ यात्राओं में
पिछले क़दम की थकान ही
अगले क़दम की उठान बन जाती है।
तोतली भाषा में
लिखा जाता है
जीवन का भाष्य,
जैसे भाषा के
ख़ालीपन को भरने की
पहली तोतली कोशिश,
जैसे प्रेम में पगा हुआ
पहला शब्द,
जैसे अँकुआते बीज की ज़मीन पर
बारिश की पहली बूँद।
बारिश के साथ ही
बह गया
उम्र का कच्चापन,
किसी परछाईं ने उठाया डस्टर
और पोंछ दिये-
आकाश, नदी, पेड़, बारिश,
मिट्टी, पक्षी, हवा, बीज और रोशनी।
पाँवों तले
बिछ गयीं सर्पीली सड़कें,
सड़कों पर
दौड़ने का भ्रम पाले
रेंगने लगी ज़िंदगी।
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