निष्ठुरताओं से घिरा भयभीत मन
धैर्य का अभिनय कर रहा है

अवमुक्त होने के सन्दर्भ में
कुछ स्मृतियाँ, कुछ आशंकाएँ बची हैं

आगंतुक पत्र के साथ
चपरासी
शहर से शहर भागता है

एक दिन ठग लिए गए समय की राख
हमारी नियोजित इच्छाओं पर
धूल की तरह
पड़ रही होती है

बहुत आत्मीय लगते हैं रास्ते
जटिल दुनिया में आतिथ्य तलाशते
प्रेम-पत्रों की तरह

उस दिन अमलतास से नीचे कोई फूल
नहीं गिरा
पदचिह्न मिटाकार कोई ज्योत्सना-अभिमानी चल नहीं सकता

मैं एक खोया हुआ यात्री हूँ;

अधिष्ठित सपनों में
अपना घर भूल आया हूँ

मैं जब सो जाता हूँ
तो मुझे अपने सपनों में
असली कहानी मिलती है
और देखता हूँ
आँखों से एक हाथ दूर
पुराना अतीत बैठा है

अजीब घटनाओं में समय रुकने का भ्रम
छिपा है

मन किसी शोकागार में बिलखती चिड़िया है;
सम्प्रेषित नहीं हो पाता निष्ठुर अवबोध

कथानकों की दुर्लब्ध भाषा में गहरे डूबा मैं
छिछला अवसाद लिए हुए

समय का प्रवाह अब आगे नहीं बढ़ रहा है
(हालाँकि आत्महत्या अब एक परित्यक्त विचार है)
और समय की प्रतिबद्धता जैसे हताशा का चेहरा है

प्रतिबद्धताएँ कातर मन का दिवास्वप्न हैं
यही वास्तविकता की संरचना का
कुल तोड़फोड़ है!

मनीष कुमार यादव की कविता 'स्मृतियाँ एक दोहराव हैं'

किताब सुझाव:

मनीष कुमार यादव
मनीष इलाहाबाद से हैं और डॉ॰ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ से एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर रहे हैं! कविताएँ लिखते हैं और हिन्दी साहित्य में विशेष रूचि रखते हैं! उनकी कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं!