रमेश पठानिया

रमेश पठानिया
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लिखना, अस्सी के दशक में शुरू किया, कविता, कहानी, और समाचार पत्रों के लिए लेख और कुछ संपादकीय, उत्तरी भारत के हिंदी समाचार पत्रों में लेखन जारी रहा। कविता लिखता रहा। हाँ हिंदी भाषी प्रदेश का न होने से प्रकाशक नहीं मिले, और जो मिले उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया। कुछ एक महानुभावों को कविताएं दिखाईं तो उन्होंने तरह-तरह की टिप्पणी की और कुछ ने मेरे जाते ही, टाइप की हुई कविताओं के पन्ने कूड़े के डिब्बे में फ़ेंक दिए। आज का ज़माना बिलकुल अलग है, लोगों की विचारधारा थोड़ी तो बदली है, अपनी कविताओं को किसी भी प्लेटफार्म पर प्रस्तुत किया जा सकता है। कविता लेखन जारी रखा, मेरे भीतर जब भी कुछ टूटता रहा, जुड़ता रहा, बनता रहा, बिगड़ता रहा.. लिखता रहा।
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