आख़िरी दुआ माँगने को हूँ
आसमान पर, रात के सिवा, कुछ नहीं रहा
कौन मुट्ठियाँ, रेत से भरे
पानियों का रुख, शहर की तरफ़, अब नहीं रहा।

कितने मुतमइन लोग आज हैं?
देर रात तक जागने का ग़म अब उन्हें नहीं
मैं भी चाँद का मुन्तजिर नहीं
दिल ज़मीन से उसके नक़्शे-पा सारे मिट गये
ख़्वाब देखना तर्क कर चुका
किस सुकून से सो रहा हूँ मैं?

ऐसा क्यों हुआ?
आग जिस्म कब बर्फ़ हो गया?

सोचता हूँ मैं
और सोचकर अपने आपके इस ज़वाल पर
कुछ उदास-सा हो रहा हूँ मैं
आख़िरी दुआ माँगने को हूँ।

शहरयार
अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फ़रवरी २०१२), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे।