आइए मरुभूमि में उद्यान की चर्चा करें,
ध्वंस के सन्दर्भ में निर्माण की चर्चा करें।
निर्झरों, नदियों, तड़ागों की प्रगति को साधुवाद,
सिंधु में उठते हुए तूफ़ान की चर्चा करें।
यज्ञ के उपरोहितों के पास सामग्री अपार,
पूर्ण आहुति दे, उसी यजमान की चर्चा करें।
बादलों के अट्टहासों से घिरे वातावरण में,
बिजलियों-सी कौंधती मुस्कान की चर्चा करें।
देव-दैत्यों की कथाएँ तो पुरानी पड़ गईं,
‘रंग’ जैसे आधुनिक इंसान की चर्चा करें।
बलबीर सिंह 'रंग' की कविता 'पीछे जा रहा हूँ मैं'