जल के साथ जल हूँ,
खेतों तक उसे लाता हुआ।
बीज के साथ बीज हूँ,
उसे उगाता हुआ।
हवा के साथ हवा हूँ,
फ़सल के साथ लहराता हुआ।
धूप के साथ धूप हूँ,
धान पकाता हुआ।
ठण्ड के साथ ठण्ड हूँ,
पहरे पर जाता हुआ।
दिन हूँ, रात हूँ,
सुबह दुपहर शाम हूँ,
अनथक बेचैन हूँ,
आपका और अपना चैन हूँ,
अन्न के ढेर लगाता हुआ।
नन्हे दुध-मुहों के मुँह से
बूढ़े बुज़ुर्ग-मुहों तक
मैं ही तो हूँ,
दुखी या मुस्काता हुआ।
प्रयाग शुक्ल की कविता 'उन्माद के ख़िलाफ़'