उन्माद कभी ज़्यादा देर तक नहीं
ठहरता,
यही है लक्षण उन्माद का।
बीजों में, पेड़ों में, पत्तों में नहीं होता
उन्माद
आँधी में होता है
पर वह भी ठहरती नहीं
ज़्यादा देर तक
जब हम होते हैं उन्माद में
देख नहीं पाते फूलों के रंग
जैसे कि वे हैं।
उतर जाता उन्माद नदी का भी
पर जो देखता है नदी का उन्माद भी
वह उन्माद में नहीं होता।
उन्माद सागर का होता है
पर वह भी नहीं रहता
उन्माद में बराबर।
सूर्य और चन्द्र में तो होता ही
नहीं उन्माद,
होता भी है तो ग्रहण
जो हैं उन्माद में
उन्हें आएँगी ही
नहीं समझ में यह पंक्तियाँ
प्रतीक्षा में रहेगी
कविता यह
उन्माद के उतरने की।
प्रयाग शुक्ल की कविता 'तुम मत घटाना'