एक दिन करेंगे बात केवल प्यार की!
तुम कहोगे—रुको
तो मैं नहीं दिलाऊँगी याद
कि आठ बज गये हैं
चाँद चढ़ गया है
लौट जाओ घर तुम
कि तुम्हारे होने से नहीं हो पातीं
लड़कियाँ सड़क पर मौजूद
लड़कियाँ—
जिनसे मैं मोहब्बत करती हूँ
जिनकी आँखों की बेचैनी में
मैं देखती हूँ अपना ज़ोर से धड़कता दिल।
मैं भी उस दिन रोकूँगी तुम्हें
बोलूँगी तुम्हें
कि तुम्हारी पेशानी पर पड़ी ज़ुल्फ़ें
दरख़्तों से छनती, ज़मीन पर गिरती
चाँदनी हैं
तुम्हारे माथे से ज़ुल्फ़ें पीछे हटा
मैं उस चाँदनी को अपनी अंजुली में भरूँगी
और फैला दूँगी हर उस कोने में
जहाँ से उठ गये प्रेमी जोड़े
आठ बज जाने पर।
तुम कहोगे कि तुम मुझे चूमना चाहते हो
तो मैं नहीं देखती रह जाऊँगी किसी शून्य में
नहीं खींच लाऊँगी
हर वह क़िस्सा
जहाँ किसी ने किसी को चूमा तो
मगर छुआ नहीं
जहाँ किसी ने किसी के होंठों से रिसता लुआब तो चखा
मगर उसके हाथ से गिलास ले
पानी नहीं पिया।
मैं भी उस दिन एक धुरी पर
झुका अपना सिर
अपने होंठ
टिका दूँगी तुम्हारे होंठों पर
और हमारे काँपते बदनों के बीच देर तक जलेंगे
जात, धर्म, वर्ग, राज्य और कुटुम्ब।
तुम कहोगे कि तुम्हें मेरे साथ दूर तक चलना है
तो मैं ख़ुद को थकने नहीं दूँगी
नहीं तलाशूँगी बैठ जाने को खुदरी घास
ठीक उस महल के सामने
जिसमें किसी ग़रीब की चमड़ी के कालीन सजे हों
नहीं उठाऊँगी मुट्ठी में
विस्टा के लिए खुदती मिट्टी
जिसके साथ खोद बाहर कर दी जा रही हों
अद्ल-ओ-इंसाफ़ की उम्मीदें।
मैं देखूँगी तुम्हारे पैर, और
बिलकुल उसी रिदम पर अपने पैर बढ़ाते
चलती चली जाऊँगी
और हम बढ़ते जाएँगे
अमरीका से आगे, इज़राइल से आगे, हिन्दोस्तान से आगे।
तुम पेश करोगे मुझे कोई गुलाब का फूल
तो मैं नहीं मसलूँगी तोड़कर उसकी पत्तियाँ
उसकी ख़ुशबू में नहीं झोकूँगी
किसी और फूल से आती सड़ांध
सड़ांध जिसे अपनी नाक के एक नथुने पर उँगली रख
दूसरे नथुने से खींच
कोई रचता है उन्माद
जलाता है घर
गलाता है निवाले
और सो जाता है, भूखा।
मैं एक हथेली में थाम वो गुलाब
दूसरी से पकड़ूँगी तुम्हारा हाथ
और हम रचेंगे ख़ुशबू, नयी बयार की
उस दिन देर तक करेंगे
बात केवल प्यार की!
शिवा की कविता 'शुद्धिकरण'