Tag: राजनीति
जावेद आलम ख़ान की कविताएँ
तुम देखना चांद
तुम देखना चांद
एक दिन कविताओं से उठा ज्वार
अपने साथ बहा ले जाएगा दुनिया का तमाम बारूद
सड़कों पर क़दमताल करते बच्चे
हथियारों को दफ़न...
कहाँ हैं तुम्हारी वे फ़ाइलें
मैं जानता था—तुम फिर यही कहोगे
यही कहोगे कि राजस्थान और बिहार में सूखा पड़ा है
ब्रह्मपुत्र में बाढ़ आयी है, उड़ीसा तूफ़ान की चपेट में...
तीन चित्र : स्वप्न, इनकार और फ़ुटपाथ पर लेटी दुनिया
1
हम मृत्यु-शैय्या पर लेटे-लेटे
स्वप्न में ख़ुद को दौड़ता हुआ देख रहे हैं
और हमें लगता है हम जी रहे हैं
हम अपनी लकड़ियों में आग के...
एक दिन करेंगे बात केवल प्यार की
एक दिन करेंगे बात केवल प्यार की!
तुम कहोगे—रुको
तो मैं नहीं दिलाऊँगी याद
कि आठ बज गये हैं
चाँद चढ़ गया है
लौट जाओ घर तुम
कि तुम्हारे होने...
मन्नू भण्डारी – ‘महाभोज’
मन्नू भण्डारी के उपन्यास 'महाभोज' से उद्धरण | Quotes from 'Mahabhoj', a novel by Mannu Bhandari
चयन व प्रस्तुति: पुनीत कुसुम
"अपने व्यक्तिगत दुख-दर्द, अंतर्द्वंद्व या...
साँप जो अपनी पूँछ खा गया [किताब अंश: ‘ठाकरे भाऊ’]
धवल कुलकर्णी की किताब 'ठाकरे भाऊ : उद्धव, राज और उनकी सेनाओं की छाया', राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।
महाराष्ट्र के सियासी परिदृश्य पर...
धिक्कार है
आँख मूँद जो राज चलावै
अंधरसट्ट जो काज चलावै
कहे-सुने पर बाज न आवै
सब का चूसै—लाज न लावै
ऐसे अँधरा को धिक्कार!
राम-राम है बारम्बार!!
कानों में जो रुई...
रोटी माँग रहे लोगों से
रोटी माँग रहे लोगों से किसको ख़तरा होता है?
यार सुना है लाठी-चारज, हल्का-हल्का होता है।
सिर फोड़ें या टाँगें तोड़ें, ये क़ानून के रखवाले,
देख रहे हैं...
कायरों का गीत
शोर करोगे! मारेंगे
बात कहोगे! मारेंगे
सच बोलोगे! मारेंगे
साथ चलोगे! मारेंगे
ये जंगल तानाशाहों का
इसमें तुम आवाज़ करोगे? मारेंगे...
जो जैसा चलता जाता है, चलने दो
दीन-धरम के नाम...
जन-प्रतिरोध
जब भी किसी
ग़रीब आदमी का अपमान करती है
ये तुम्हारी दुनिया,
तो मेरा जी करता है
कि मैं इस दुनिया को
उठाकर पटक दूँ!
इसका गूदा-गूदा छींट जाए।
मज़ाक़ बना...
सामने का वह सब
आप कहते हैं
सामने एक पेड़ है
चलिए मैं माने लेता हूँ
कि सामने एक पेड़ है
हालाँकि जो नहीं है
आप कहते हैं
सामने एक नदी है
चलिए मैं माने...
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती...