जिस दिन मुझे मौत आए
उस दिन बारिश की वो झड़ी लगे
जिसे थमना न आता हो,
लोग बारिश और आँसुओं में
तमीज़ न कर सकें
जिस दिन मुझे मौत आए
इतने फूल ज़मीन पर खिलें
कि किसी और चीज़ पर नज़र न ठहर सके,
चराग़ों की लवें दिए छोड़कर
मेरे साथ-साथ चलें
बातें करती हुई
मुस्कुराती हुई
जिस दिन मुझे मौत आए
उस दिन सारे घोंसलों में
सारे परिंदों के बच्चों के पर निकल आएँ,
सारी सरगोशियाँ जल-तरंग लगें
और सारी सिसकियाँ नुक़रई ज़मज़मे बन जाएँ
जिस दिन मुझे मौत आए
मौत मेरी इक शर्त मानकर आए
पहले जीते-जी मुझसे मुलाक़ात करे
मेरे घर-आँगन में मेरे साथ खेले
जीने का मतलब जाने
फिर अपनी मनमानी करे
जिस दिन मुझे मौत आए
उस दिन सूरज ग़ुरूब होना भूल जाए
कि रौशनी को मेरे साथ दफ़्न नहीं होना चाहिए!
किश्वर नाहीद की नज़्म 'घास तो मुझ जैसी है'