क्या करूँ मैं
आसमां को अपनी मुट्ठी में पकड़ लूँ
या समुन्दर पर चलूँ
पेड़ के पत्ते गिनूँ
या टहनियों में जज़्ब होते
ओस के क़तरे चुनूँ
डूबते सूरज को
उंगली के इशारे से बुलाऊँ
रात में साया बनूँ
ख़ाली आँखों में सजीले रंग ढूँढूँ
साफ़ चेहरे पर सियाही से कोई क़िस्सा लिखूँ
क्या करूँ मैं
अपने ही पैरों से उलझूँ और गिरूँ
फिर अपनी आँखों से छुपूँ
और अपनी ख़्वाहिश पर हँसूँ
क्या करूँ
ला-हासिलि की सर्द चादर ओढ़ लूँ
और चुप रहूँ
या वसवसों के बर्फ़-ज़ारों से
तुम्हें आवाज़ दूँ?