एक पंडित जी अपने लड़के को पढ़ा रहे थे..

‘मातृवत् परदारेषु’

“पर स्‍त्री को अपनी माँ के बराबर समझें।”

लड़का मूर्ख था कहने लगा- “तो क्‍या पिता जी, आप मेरी स्‍त्री को माता के तुल्‍य समझते हैं?”

पिता रुष्ट हो बोला- “मूर्ख आगे सुन..”

‘परद्रव्‍येषु लोष्‍ठवत्’

“पराए धन को मिट्टी के ढेले के सदृश समझें।”

लड़का झट बोल उठा- “चलो कचालूवाले का पैसा ही बचा।”

पंडित जी ने कहा- “श्‍लोक का अर्थ यह नहीं है, पहले सुन तो ले।”

लड़के ने कहा- “यहाँ तक तो मतलब की बात थी, अच्‍छा आगे चलिए।”

पंडितजी ने फिर कहा,

‘आत्‍मवत सर्वभूतेषु य: पश्‍यति सपंडित:’

“अपने सदृश्‍य जो औरों को देखता है, वही पंडित है।”

लड़का कुछ देर सोच के बोला- “पिता जी तब आप कलुआ मेहतर के लड़के के साथ खेलने को हमें क्‍यों रोकते हैं।”

इस पर पंडितजी ने उसे हजार समझाया पर वह अपनी ही बात बकता गया।

बालकृष्ण भट्ट
पंडित बाल कृष्ण भट्ट (३ जून १८४४- २० जुलाई १९१४) हिन्दी के सफल पत्रकार, नाटककार और निबंधकार थे। उन्हें आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जा सकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माताओं में भी उनका प्रमुख स्थान है।