यह दस्तक हत्यारे की है
दूर किसी घर में उठी चीख़ों के बाद।
हर तरफ़ दम साधे
घरों के निहत्थे सन्नाटे भर हैं
हुआ क्या आख़िर
कि चीख़ों के इस संसार में हर कोई अकेला
ऐसा जीना और ऐसा मारना!
इस तरह कि एकदम बेमतलब!
पाप के इतने चेहरे
ईश्वर का कोई चेहरा नहीं!
बचाने वाले से बड़ा
मारने वाला आया!
एक बच्चा लातों की मार से
अपने मैल और कीचड़ में
मरता है रोज़।
बेघर करोड़ों
सड़कों पर करते हैं कूच
कटोरे पर माथा पटकते मरते हैं बेपनाह।
ऐसे में मतलब क्या है मेरे जीवन का!
अगर मैं साँकल चढ़ाए बाहर को पीठ किए
भीतर को धंसता ही जाता हूँ।
मतलब है क्या मेरे जीवन का!
मैं दरवाज़ा खोलता हूँ
कि लड़ते-लड़ते नहीं, दरवाज़ा खोलते-खोलते
मारा गया
बाहर पर कोई नहीं हथियार बंद कोई
बचा रह गया मैं
मौत के मुँह से लौटकर
जीवन के बंद दरवाज़े पर
मेरी दस्तक!
यह दस्तक हत्यारे की है।
नवीन सागर की कविता 'अपना अभिनय इतना अच्छा करता हूँ'