सबक़
इस समय ने पढ़ाए हैं हमें
कई सबक़
मसलन यही कि
शब्दों से ज़्यादा स्पर्श में ताक़त होती है
मिलने के अवसर गँवाना
भूल नहीं, अपराध है
और जीवन से बढ़कर कुछ नहीं
अब देखो न!
न जाने कितनों के स्पर्श से
महरूम हो चुके हैं सदा के लिए हम
मिलना तो हो गया है असम्भव सादृश्य
जीवन इतना क्षणभंगुर कब था?
तो सुनो—
मेरे दोस्तो, दुश्मनो, परिचितो, अपरिचितो
जैसे ही बीते यह शुष्क दौर
अपने कांधे न हटाना मेरी पहुँच से
मैं अपनी दोनों प्यासी हथेलियाँ
सुप्त माथा और सूखी आँखें
रखूँगा उन पर
ज़रा-सी जीवन की नमी के लिए।
इन दिनों
कविता लिखना
लगता है अश्लील आजकल
और किताबें पढ़ना
कोई बेहद उबाऊ ग़ैर-ज़रूरी काम
आसमान से उतरकर पैरों पर
आ गिरती है
रात अक्सर ही घप्प से
करवटों में ढली रहती है
नींद इन दिनों
पानी का गिलास उठाता हूँ
तो गंगा के विलाप का स्वर गूँज उठता है
उसमें तैरती लाशें बोलने लगती हैं कोरस में
व्यवस्था की काहिली का आख़्यान
टीवी खोलता हूँ तो
हो जाता हूँ जल्दी ही बन्द करने पर मजबूर
क्योंकि घर के सारे ऑक्सीजन को
उसमें पसरे जीवन का संघर्ष
अपनी ओर खींचने लगता है
और मैं ख़ुद को उखड़ता महसूस करने लगता हूँ
आकर बैठ जाता हूँ फिर
घर की खिड़की पर
दिखता है सामने के उदास स्कूल की दीवार पर टँगा पोस्टर
पोस्टर पर राजा का हँसता-मुस्कुराता चेहरा
उबकाई आते-आते रह जाती है
फिर देख लेता हूँ उसके मुँह पर पड़े कबूतरों की बीट
बस यही एक बात
मुझे कुछ सुकून देती है इन दिनों।
इच्छा
इतनी ख़ुशी कभी न मिले
कि कोई रोए और मैं
बस मुस्कुराता रहूँ
इतनी निश्चिन्तता न रहे कभी
कि जब सब हो रहे हों
आकुल-व्याकुल
मैं मज़े में खाता रहूँ।
इतना जीवन राग न व्यापे मुझमें
कि चहुँ ओर हो मृत्यु का शोर
और मैं गीत गाता रहूँ
इतनी न आए महानता कभी भी
कि भूलकर साधारण की परिभाषा
सिर्फ़ अपनी भाषा में आता रहूँ
हे दुनिया की तमाम
उपलब्धियो और कामनाओ
रहना मुझमें कुछ कम-कम ही
जिससे मैं
इंसान तो कहलाता रहूँ।
मेरी चाह
मैं चाहता हूँ कि मेरी सभी कविताएँ
उछलें-कूदें बनकर गेंद
और लग जाएँ बच्चों के हाथ
जाकर टकराएँ कई दिनों से बन्द
किसी खिड़की से
और लौटें किसी झिड़की के साथ।
मैं चाहता हूँ मेरी कविताएँ
किसी स्कूल में गायी जाएँ
पर प्रार्थना सभा में नहीं
शिक्षकों के कहने पर जलसे में भी नहीं
बल्कि तब जब बच्चे घरों से निकल
स्कूल की ओर अपने क़दम बढ़ाएँ
उसे ख़ुद-ब-ख़ुद गुनगुनाएँ।
मैं चाहता हूँ कि मेरी कविताएँ
न रह जाएँ सिर्फ़ मेरी
उनमें छप जाए
बहुतों की बातें, बहुतों के क़िस्से
हर कोई उसे पढ़े अपने एकाकी पलों में
पढ़ते हुए अनुभव करे ख़ुद को एक बच्चा।
नदी के तट पर
(कुआनो नदी के तट पर कुछ दिन पहले)
एक नदी
मैं देख रहा था
जैसे हो चलने में ही लीन
शान्त बहती चली जाती अपने गंतव्य को
एक नदी मैं महसूस कर रहा था
अपने अंतस में
वह उमड़-घुमड़ रही थी
बेकल थी
इस बाहर की नदी से मिलने को
मैं बैठा कुछ पल बाहर की नदी के तट पर
लिए अंतस की नदी
दोनों मिलीं
दोनों खिलीं
दोनों बहीं
साथ रहीं
बतियायीं
खिलखिलायीं
जब आया मैं वहाँ से
बाहर की नदी कुछ अंदर थी
अंतस की नदी कुछ रह गई वहीं
एक नयी धार बहती थी मुझमें
एक नया कोई उतरा था मुझमें।
पानी और प्रेम
सूख चुकी नदी की रेत पर तड़पकर
मर गई मछली की आँखों में
कभी देखना
उसमें दिखेगा एक पूरा हरहराता समंदर
जल के प्रेम में होती है मछली
और प्रेम का जल कभी सूखता नहीं
पहाड़-सी ऊँचाई पर कभी पहुँचना
तब महसूस करना
अकेलापन उत्तुंग शिखरों का
और निहारना
रिसकर घाटियों, मैदानों तक पहुँचते उसके आँसुओं को
जो कुछ और नहीं
सबसे मिलने की उसकी पिघलती हुई ललक है
पानीदार पोखरों-तालाबों के शान्त जल पर
कभी फेंककर देखना एक कंकड़
नाच उठेंगी लहरें
ख़बर मानकर इसे किसी के पास आने की
जिसे हम कंकड़ समझते हैं
वह दरअसल एक चिट्ठी होती है
जिसे बाँचता है समूचा जलाशय झूम-झूमकर
गुज़रना किसी कुएँ के पास से
तो झाँकना ज़रूर उसमें
उसकी आत्मा तुम्हारे इंतज़ार में
दर्पण बनी मिलेगी
उसमें तुम ख़ुद दिखोगे
बादल दिखेंगे
चिड़िया दिखेगी
और दिखेगा एक टुकड़ा आसमान भी
सुनो—
पानी से कभी दूर मत होना
क्योंकि यही जीवन है और जीवन का सबक़ भी
अपने बर्तनों में
हृदय में
आँखों में
ज़रूर रखना पानी
कि यही एक अकेली
प्रेम के सभी रूपों की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है।
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