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राहुल तोमर की कविताएँ
प्रतीक्षा
उसकी पसीजी हथेली स्थिर है
उसकी उँगलियाँ किसी
बेआवाज़ धुन पर थिरक रही हैं
उसका निचला होंठ
दाँतों के बीच नींद का स्वाँग भर
जागने को विकल लेटा हुआ...
कविताएँ: जून 2021
सबक़
इस समय ने पढ़ाए हैं हमें
कई सबक़
मसलन यही कि
शब्दों से ज़्यादा स्पर्श में ताक़त होती है
मिलने के अवसर गँवाना
भूल नहीं, अपराध है
और जीवन से...
यहाँ थी वह नदी
जल्दी से वह पहुँचना चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इंतज़ार कर रही थी
और पक्षियों की...
नदी और स्त्री
स्त्री होना
या
होना नदी!
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
दोनों ही उठतीं, गिरतीं
बहतीं, रुकतीं
एक बदलती धारा
एक बदलती नियति।
एक सोच
एक धार
मिल जाती है
किसी न किसी
सागर से
और हो जाती है
एकाकार
सागर में
अपने...
कविताएँ: फ़रवरी 2021
तुम्हारे साथ थोड़ा और मनुष्य हुआ मैं
तुम्हारे साथ
तुम्हारा शहर
अपना-सा लगा
तुम्हारे साथ
मैंने जाना—
कि शहर को जानना हो तो
शहर में बहती नदी को जानना चाहिए
नदी की...
नदी
1
घर से निकलकर
कभी न लौट पाने का दुःख
समझने के लिए
तुम्हें होना पड़ेगा
एक नदी!
2
नदियों की निरन्तरता
को बाँध
उनका पड़ाव निर्धारित कर
मनुष्य ने देखा है
ठहरी हुई नदियों...
यमुना इलाहाबाद में
यह कविता यहाँ सुनें:
https://youtu.be/WSOtQYHgigc
कभी-कभी मुझे यह साफ़ आसमान से काटी गई एक हल्की
नीली पट्टी लगती है
कभी-कभी दोआबी ज़मीन लिए साड़ी का किनारा
और कभी-कभी जमुना...
मैं वहाँ हूँ
'Main Wahan Hoon' | a poem by Agyeya
दूर दूर दूर... मैं वहाँ हूँ!
यह नहीं कि मैं भागता हूँ—
मैं सेतु हूँ—जो है और जो होगा...
राम दयाल मुण्डा की कविताएँ
उनींद
नदी की बाँहों में पड़ा पहाड़
सो रहा है
और
पूछे-अनपूछे प्रश्नों के जवाब
बड़बड़ा रहा है।
अनमेल
लोगों के कहने से
कह तो दिया कि साथ बहेंगे
पर मन नहीं मिल...
नदी, स्वप्न और तुम्हारा पता
मैं जग रहा हूँ
आँखों में गाढ़ी-चिपचिपी नींद भरे
कि नींद मेरे विकल्पों की सूची में खो गयी है कहीं।
जिस बिस्तर पर मैं लेटा
चाहे-अनचाहे मेरी उपस्थिति...
नीरव की कविताएँ
1
ढहते थे पेड़
रोती थी पृथ्वी
हँसता था आदमी
मरती थी नदी
बिलखता था आकाश
हँसता था आदमी
टूटता था संगीत
बुझता था प्रकाश
हँसता था आदमी
टूट रहा है आदमी
बुझ रहा है...
यह नदी
यह नदी
रोटी पकाती है
हमारे गाँव में।
हर सुबह
नागा किए बिन
सभी बर्तन माँजकर,
फिर हमें
नहला-धुलाकर
नैन ममता आँजकर
यह नदी
अंधन चढ़ाती है
हमारे गाँव में।
सूखती-सी
क्यारियों में
फूलगोभी बन हँसे,
गंध
धनिए में सहेजे,
मिर्च...