मुक्तावस्था
मंडी हाउस के एक सभागार में
बुद्धिजीवियों के बीच बैठी एक लड़की
नाटक के किसी दृश्य पर
ठहाके मार के हँस पड़ती है
सामने बैठे सभी लोग
मुड़कर देखते हैं पीछे और कुछ बुदबुदाते हैं
मैं देखता हूँ उसे
मुस्कुराते हुए बहुत प्यार से
मुझे यक़ीन है
वह हँसती होगी जहाँ हँसना चाहिए
जहाँ रोना चाहिए वहाँ रोती होगी
जहाँ लड़ना चाहिए वहाँ लड़ती होगी ख़ूब
तमाम भाव लिए
घूमती होगी वह
दिल्ली की सड़कों पर…
शिकायतें
अब तो ज़माना नहीं रहा चिठ्ठियों का
लेकिन अब भी
समय-समय पर
पढ़ने को मिल जाती हैं
छोटे-छोटे काग़ज़ों पर
लिखी गईं तुम्हारी शिकायतें
तुम्हारी शिकायतें
फुटनोट्स की तरह
मेरा मार्गदर्शन करती हैं।
दिल्ली
मेरे गाँव के लोग
जब कभी भी करते हैं फ़ोन
बात-बात में पूछ ही बैठते हैं
मौसम का हाल
शायद!
उन्हें भी मालूम है
दिल्ली से ही तय होती है
देश की आबोहवा!
प्रेम नहीं करना चाहिए एक सवाल की तरह
एक दिन
आत्मीयता के साथ
उसने कहा—
मैं तुमसे प्रेम करती हूँ
और कहकर चली गई
एक दिन
मैंने भी किसी से कहा था—
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
और कई दिनों तक ठहरा रहा
उत्तर की प्रतीक्षा में…