Tag: freedom

Dunya Mikhail

दुन्या मिखाइल की कविता ‘दी इराक़ी नाइट्स’ के दो अंश

इराक़ी-अमेरिकी कवयित्री दुन्या मिखाइल का जन्म बग़दाद में हुआ था और उन्होंने बग़दाद विश्वविधालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। सद्दाम हुसैन के शत्रुओं...
Amit Tiwary

पीठ

1 बोझा ढोते-ढोते इस देश की पीठ इतनी झुक गयी है कि पलटकर किए जाने वाले काम स्वतंत्रता या संविधान की तरह माने जा चुके हैं किसी पौराणिक गप्प का हिस्सा। 2 राजनीति— नियमों...
Namdeo Dhasal

गुलाबी अयाल का घोड़ा

मुझे स्वतंत्रता पसन्द है वह बढ़िया होती है समुद्र-जैसी घोड़ा आओ, उसका परिचय कर लेंगे शतकों की सूलि पर चढ़ते हुऐ उसने देखा है हमें अपना सबकुछ शुरू होता है...
Jaiprakash Leelwan

आज़ादी का आसमान

मेरी तो जान हैं तुम्हारे ये सीने, तुम्हारे ये सिर जो अपने सपनों के रोशनदान से आज़ादी का आसमान देखने को मचल रहे हैं। तुम्हारे सिर और सीनों में...
Woman doing home chores

एक इन्टरव्यू

मैंने बच्चे को नहलाती खाना पकाती कपड़े धोती औरत से पूछा— 'सुना तुमने पैंतीस साल हो गए देश को आज़ाद हुए?' उसने कहा 'अच्छा'... फिर 'पैंतीस साल' दोहराकर आँगन बुहारने लगी दफ़्तर जाती...
Sharad Billore

हम आज़ाद हैं

सतरंगे पोस्टर चिपका दिए हैं हमने दुनिया के बाज़ार में कि हम आज़ाद हैं। हम चीख़ रहे हैं चौराहों पर हम आज़ाद हैं हम आज़ाद हैं क्योंकि हमने भूख से मरते क़र्ज़ के नीचे...
Fist, Protest, Dissent

आज़ाद कवि

अपराधी-सा जब उन्हें पकड़ा गया वो हमेशा की तरह अपने कामों में व्यस्त थे, लहूलुहान जंगल और नदी के ज़ख़्मों पर मलहम लगा फूलों को सुरक्षित करने के...
Harivansh Rai Bachchan

आज़ादी के बाद

अगर विभेद ऊँच-नीच का रहा अछूत-छूत भेद जाति ने सहा किया मनुष्य औ’ मनुष्य में फ़रक़ स्वदेश की कटी नहीं कुहेलिका। अगर चला फ़साद शंख-गाय का फ़साद सम्प्रदाय-सम्प्रदाय का उलट न...
Nelson Mandela

नेल्सन मंडेला

छोटी-सी जगह से बड़े-बड़े सपने देखे जा सकते हैं उसने बचपन में पिता से सुनी थी यह बात तभी तो उसने देखा था जेल की आठ बाई सात की...
Ramnika Gupta

पैने चाक़ू

मैं पंख फैलाए बांधे पंखों में हवा उन्मत्त मदमस्त उन्मुक्त गगन में उड़ती थी... रास नहीं आया उन्हें मेरा उड़ना वे पंजे पजाकर चोंत तेज़ कर धारदार पैनी नज़रों से मेरे पंख काटने को उद्यत बढ़े आ...
Ahmad Nadeem Qasmi

एक दरख़्वास्त

ज़िन्दगी के जितने दरवाज़े हैं, मुझ पे बंद हैं देखना— हद्द-ए-नज़र से आगे बढ़कर देखना भी जुर्म है सोचना— अपने अक़ीदों और यक़ीनों से निकलकर सोचना...
Dhoomil

बीस साल बाद

बीस साल बाद मेरे चेहरे में वे आँखें लौट आयी हैं जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है: हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़...
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