‘Pukaarna’, a poem by Vishesh Chandra Naman
यह जाने बिना
कि पक्षी लौटे या नहीं
मेरे बोए पेड़ों की गर्मास में
नहीं पुकारता उन्हें
यह जानने के बाद
कि लौट चुके हैं वे
पेड़ों की सबसे मुलायम काँख में,
एक मामूली मुस्कान के साथ
अपनी पुकार अनंत तक स्थगित करता हूँ
उनके चहक-चहक उड़ जाने के बाद
रोपता हूँ
आग्रह का एक और पौधा
पुराने वृक्षों में पानी डालता हूँ
जब कभी दूर-देश जाता हूँ
पाता हूँ
मेरी चाहत, मेरी पुकार
हर तरफ चहचहा रही है
हर नए पत्ते के उग आने के साथ
आसमान में एक अतिरिक्त उड़ान भी उग आती है!
चित्र श्रेय: विशेष चंद्र नमन
यह भी पढ़ें:
विशेष चंद्र नमन की कविता ‘लगभग’
प्रीती कर्ण की कविता ‘कटते वन’
रवीन्द्र कालिया की कहानी ‘गौरैया’