‘Pukaarna’, a poem by Vishesh Chandra Naman

यह जाने बिना
कि पक्षी लौटे या नहीं
मेरे बोए पेड़ों की गर्मास में
नहीं पुकारता उन्हें

यह जानने के बाद
कि लौट चुके हैं वे
पेड़ों की सबसे मुलायम काँख में,
एक मामूली मुस्कान के साथ
अपनी पुकार अनंत तक स्थगित करता हूँ

उनके चहक-चहक उड़ जाने के बाद
रोपता हूँ
आग्रह का एक और पौधा
पुराने वृक्षों में पानी डालता हूँ

जब कभी दूर-देश जाता हूँ
पाता हूँ
मेरी चाहत, मेरी पुकार
हर तरफ चहचहा रही है

हर नए पत्ते के उग आने के साथ
आसमान में एक अतिरिक्त उड़ान भी उग आती है!

चित्र श्रेय: विशेष चंद्र नमन

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विशेष चंद्र नमन दिल्ली विवि, श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज से गणित में स्नातक हैं। कॉलेज के दिनों में साहित्यिक रुचि खूब जागी, नया पढ़ने का मौका मिला, कॉलेज लाइब्रेरी ने और कॉलेज के मित्रों ने बखूबी साथ निभाया, और बीते कुछ वर्षों से वह अधिक सक्रीय रहे हैं। अपनी कविताओं के बारे में विशेष कहते हैं कि अब कॉलेज तो खत्म हो रहा है पर कविताएँ बची रह जाएँगी और कविताओं में कुछ कॉलेज भी बचा रह जायेगा। विशेष फिलहाल नई दिल्ली में रहते हैं।