‘Sapaat Seene Wali Ladkiyaan’, a poem about body shaming by Ekta Nahar

सपाट सीने वाली लड़कियाँ हर जगह से ठुकरायी गयीं

रिश्ते की बात करने आए लड़के वालों ने
जब नज़र भर के उसे देखा तो फिर
उसका कोई और हुनर मायने न रहा

पुलिस की नौकरी में चुने जाने से भी,
संघ लोक सेवा आयोग ने शर्तों में लिखा है
कि कितने इंच का होना चाहिए सीना

किसी चित्रकार ने अपने ख़ूबसूरत चित्रों में
जगह नहीं दी उस स्त्री को
जिसके सीने पर उभार न था
चित्र बनाने के लिए सुडौल शरीर का बिम्ब सबसे आकर्षक था

आए दिन देखा तिरस्कार
सहेलियों के चुटकुलों में, पति की नज़रों में
अंतरंग क्षणों में भी वो प्रेमी के सामने सहमी-सहमी सी रही
कभी खुद को ही आईने में देख हुई शर्मिंदा
कभी पैडेड ब्रा में छिपाती रही ख़ुद से ख़ुद को ही

उसके लिए छाती पर दुपट्टा डालना
भरे बदन वाली लड़की जितना ही ज़रूरी था
ताकि वो बचा सके ख़ुद को उस पर हँसती हुई लालची नज़रों से
हाँ, भरे बदन का मतलब भरी हुई छातियों से ही है शायद!

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