‘Smriti Ka Astbal’, a poem by Nirmal Gupt

स्मृति के अस्तबल में हिनहिना रहे हैं
बीमार, अशक्त और उदास घोड़े
अतीत की सुनहरी पन्नी में लिपटे
इन घोड़ों को यक़ीन नहीं हो रहा
कि वे वाक़ई बूढ़े हो चले हैं

रेसकोर्स में सरपट भागते-भागते
वे भूल चुके थे स्वेच्छा से थमना
ठिठकना और ठिठककर मुड़ना
पीछे घूमकर अपने फ़ौलादी खुरों के साथ
निरंतर घिसते हुए समय को देखना

घोड़े अपने सपनों में अभी भी दौड़ रहे हैं
बीत गए वक़्त को धता बताते
असलियत के मुख को धूलधसरित करते
अपनी जीत और जीवन का जश्न मनाते
यह उनका सच को नकारने का अपना तरीक़ा है

अस्तबल में खूँटे से बंधे बूढ़े घोड़े
अभी तक जब तब हिनहिना लेते हैं
ताकि शायद उनकी कोई सुध ले
उन्हें लौटा दे बीता हुआ वक़्त
उमंग, उत्साह और रफ़्तार

स्मृति के अस्तबल में
बीमार, अशक्त और उदास घोड़े ही नहीं
अनेक अगड़म सगड़म चीज़ों के साथ
कुछ ऐसे दु:स्वप्न भी रखे हैं
जिन्हें इत्तिफ़ाक़ से
घोड़ों की तरह हिनहिना नहीं आता

और सबसे हैरतअंगेज़ बात यह कि
ये घोड़े आईने के नहीं बने हैं
फिर भी इनमें कभी-कभी मुझे
अपना अक्स दिख जाता है…

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निर्मल गुप्त
बंगाल में जन्म ,रहना सहना उत्तर प्रदेश में . व्यंग्य लेखन भी .अब तक कविता की दो किताबें -मैं ज़रा जल्दी में हूँ और वक्त का अजायबघर छप चुकी हैं . तीन व्यंग्य लेखों के संकलन इस बहुरुपिया समय में,हैंगर में टंगा एंगर और बतकही का लोकतंत्र प्रकाशित. कुछ कहानियों और कविताओं का अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद . सम्पर्क : [email protected]