Tag: Divya Prakash Sisodia
अर्जुन अपना गांडीव उठा
है मोक्ष कहाँ है पाप पुण्य,
सब विधि विधान परिणाम शून्य।
जब जब भी रक्त बहेगा अब,
तब तब इन्सां कहेगा अब
तू कहाँ हुआ निस्तेज पड़ा,
अर्जुन अपना...
हमारा प्रेम परिचय
जब पानी की एक बूँद पर,
बनेगा सूखे का साम्राज्य,
क्या तब मिटेगी ,
तुम्हारे अधरों की प्यास?
या तब भी रह जायेगा अधूरा,
हमारा प्रेम परिचय!
ओस की बूंदों...
अंततः मिट्टी में विलीन होना है मुझे भी
पाषाणकाल से अब तक,
तुम ही हो जो मेरे साथ रहे हो।
तुम ही हो जिसने,
सिंधु नदी की गोद में,
मुझे और मेरे पूर्वजों को आश्रय दिया।
बाढ़...
एक ऐसा भी शृंगार हो
एक शृंगार ऐसा भी हो...
मुख चंद्र समान हो ना भले,
पर दया शीलता का भाव हो।
झुर्रीयाँ करे तांडव ही भले,
मुख तेज सूर्य समान हो।
मृग तुल्य...
मुझे मोक्ष नहीं पुनर्जन्म चाहिए
काग़ज़ में लिपटी सभ्यता के,
उस पन्ने को मोड़ दो,
जहाँ से मुड़ जाए ये सभ्यता,
धुएँ की ओर, जो
फैक्ट्रियों का नहीं, चूल्हे का हो।
एक वो पन्ना...