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दुःख ने दरवाज़ा खोल दिया
मैंने तो चाहा बहुत कि अपने घर में रहूँ अकेला, पर—
सुख ने दरवाज़ा बन्द किया, दुःख ने दरवाज़ा खोल दिया।
मन पर तन की साँकल...
नैराश्य, समय का शोक-गीत
नैराश्य
जो मुझे भूल गए
मैंने उन्हें भी याद रखा
जिन्होंने मुझे याद किया
उनके लिए दुआएँ माँगीं
मैंने ख़ूब किया इंतज़ार शजर की तरह
फिर एक दिन चिड़िया बन...
आषाढ़ की भरी दोपहरी में लिखी एक उदास कविता
दर्द याद रहता है
ख़ुशी गुम हो जाती है
दंश विस्मृत नहीं होता
स्पर्श में से बचा रह जाता है
उतना हिस्सा
जो रह जाता है उँगलियों पर चिपककर।
भूख...
वे हाथ होते हैं
दुश्मनों की ख़ुशी पर मुझे कुछ नहीं
कहना है। दोस्तों की
उदासी ही
मुझसे यह कविता लिखवा रही है।
जिन अँधेरे रास्तों पर सफ़र
शुरू हुआ था,
वे एकाएक राज-पथ...
दुःख की बात
निरर्थकताओं को सार्थकताओं में बदलने के लिए
हम संघर्ष करते हैं
बदहालियों को ख़ुशहालियों में बदलने के लिए
हम संघर्ष करते हैं
क्योंकि कमियाँ जब अभाव बन जाती...
आश्रय
'Ashraya', Hindi Kavita by Rashmi Saxena
नमी खोखला कर देती है
भीतर तक,
दीवार की हो
काठ की हो अथवा
हो आत्मा की
मन की दीवार पर
दुःख द्वारा लगायी सेंध से
रिसता...
क़िस्से से बाहर होने का दुःख
'Qisse Se Bahar Hone Ka Dukh', Hindi Kavita by Prabhat Milind
जो कभी व्यक्त नहीं हो पाया
दुःख से बड़ा दुःख, यही दुःख था
अब तलक दिखने...
विचित्र आकर्षण
दुख में कितना आकर्षण है!
ये जानता है एक चित्रकार,
उठाता है जब वो रंग
रंग देता है गरीबी, भूखमरी
कंकाल देह, तरसते नयन।
दुख में गजब का सम्मोहन...