तुम मेरे आस पास नहीं हो,
तुम कहीं नहीं हो…
फिर भी तुम्हारी खुश्बू,
हवाओं में घुली जा रही है
हवा चलती है जैसे कि
तुम कुछ कहे जा रहे हो
तुम सामने नहीं हो,
मगर आँखे तुम्हें ही देखे जा रही हैं
ये कैसा जुनून है,
ये कैसी जादूगरी है
कि मैं जानती हूँ
कि ना तुम मेरे हो,
ना मैं तुम्हारी,
फिर भी आती जाती साँसे
तुम्हारे नाम की लगती हैं…
तुम्हें पता हो शायद,
कि मैं तुम पर इख़्तियार समझती हूँ
तुम्हारी मुझे खबर नहीं मगर,
तुम अपनी दुनिया में शायद,
गुम या भूल गये होगे मुझे,
मेरी तन्हाइयाँ भी
तुम्हारे वजूद का एहसास दिला जाती हैं…
तुम कहाँ हो,
किस जहां में हो,
जहां भी हो,
कहती है धड़कन तुम मेरे हो,
मेरे साथ हो, मेरे पास हो..
जबकि मैं जानती हूँ, तुम नहीं हो, तुम कहीं नहीं हो….