‘Two Bodies’, a poem by Octavio Paz
अनुवाद: पुनीत कुसुम
दो जिस्म रूबरू
कभी-कभी हैं दो लहरें
और रात है महासागर
दो जिस्म रूबरू
कभी-कभी हैं दो पत्थर
और रात रेगिस्तान है
दो जिस्म रूबरू
कभी-कभी हैं दो जड़ें
बंधी हुई-सी रात में
दो जिस्म रूबरू
कभी-कभी हैं दो चाकू
और रात से निकले चिंगारी
दो जिस्म रूबरू
हैं टूटते से दो तारे
इक ख़ाली आसमान में!
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