‘लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ’ से

आदिवासी युवती पर
वो तुम्हारी चर्चित कविता
क्या ख़ूबसूरत पंक्तियाँ—
‘गोल-गोल गाल
उन्नत उरोज
गहरी नाभि
पुष्ट जंघाएँ
मदमाता यौवन…’
यह भी तो कि—
‘नायिका कविता की
स्वयं में सम्पूर्ण कविता
ज्यों
हुआ साकार तन में
प्रकृति का सौंदर्य सारा
रूप से मधु झर रहा
एवं
सुगंधित पवन उससे…’

अहा,
क्या कहना कवि
तुम्हारे सौंदर्य-बोध का!
अब इन परिकल्पित-ऊँचाइयों पर
स्वप्निल भाव-तरंगों के साथ उड़ते
कलात्मक शब्द-यान से नीचे उतरकर
चलो उस अँचल में
जहाँ रहती है वह आदिवासी लड़की

देखो ग़ौर से उस लड़की को
जिसके गोल-गोल गालों के ऊपर
—ललाट है
जिसके पीछे दिमाग़
दिमाग़ की कोशिकाओं पर टेढ़ी-मेढ़ी खरोंचें
यह एक लिपि है
पहचानो,
इसकी भाषा और इसके अर्थ को।

जिन्हें तुम उन्नत उरोज कहते हो
प्यारा-सा दिल है उनकी जड़ों के बीच
कँटीली झाड़ियों में फँसा हुआ
घिरा है थूहर के कुँजों से
चारों ओर पसरा विकट जंगल
जंगल में हिंसक जानवर
ज़हरीले साँप-गोहरे-बिच्छू
इस कैनवास में
उस लड़की की तस्वीर बनाओ कवि

अपना रंगीन चश्मा उतारकर देखो
लड़की की गहरी नाभि के भीतर
पेट में भूख से सिकुड़ी उसकी आँतों को
सुनो उन आँतों का आर्तनाद
और
अभिव्यक्त करने के लिए
तलाशों कुछ शब्द अपनी भाषा में

उतरो कवि,
लड़की की ‘पुष्ट’ जंघाओं के नीचे
देखो पैरों के तलुओं को
बिवाइयों भरी खाल पर
छाले-फफोलों से रिसते स्राव को देखो
कैसा काव्य-बिम्ब बनता है कवि

और भी बहुत कुछ है
उस लड़की की देह में
जैसे—
हथेलियों पर उभरी
आटण से बिगड़ी उसकी दुर्भाग्य-रेखाएँ
सारे बदन से चूते पसीने की गंध
यूँ तो
चेहरा ही बहुत कुछ कह देता है
और आँखों के दर्पण में
उसके कठोर जीवन का प्रतिबिम्ब—है ही

बंद कमरे की कृत्रिम रोशनी से परे
बाहर फैली कड़ी धूप में बैठकर
फिर से लिखना
उस आदिवासी लड़की पर कविता।

ग्रेस कुजूर की कविता 'प्रतीक्षा'

Book by Hariram Meena:

हरिराम मीणा
सुपरिचित कवि व लेखक।