Tag: आदिवासी
रूपांतरण
जब तक थे वे
जंगलों में
मांदर बजाते, बाँसुरी बजाते
करते जानवरों का शिकार
अधनंगे शरीर
वे बहुत भले थे
तब तक उनसे अच्छा था नहीं दूसरा कोई
नज़रों में तुम्हारी
छब्बीस...
बाहामुनी
तुम्हारे हाथों बने पत्तल पर भरते हैं पेट हज़ारों
पर हज़ारों पत्तल भर नहीं पाते तुम्हारा पेट
कैसी विडम्बना है कि
ज़मीन पर बैठ बुनती हो चटाइयाँ
और...
प्रवास का महीना
'आदिवासी नहीं नाचेंगे' झारखंड की पृष्ठभूमि पर लिखी कहानियाँ हैं जो एक तरफ़ तो अपने जीवन्त किरदारों के कारण पाठक के दिल में घर...
हरिराम मीणा की क्षणिकाएँ
'आदिवासी जलियाँवाला एवं अन्य कविताएँ' से
1
जो ज़मीन से
नहीं जुड़े,
वे ही
ज़मीनों को
ले
उड़े!
2
यह कैसा अद्यतन संस्करण काल का
जिसके पाटे पर क्षत-विक्षत इतिहास
चिता पर जलते आदर्श
जिनके लिए...
बिरसा मुंडा की याद में
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
अभी-अभी
सुन्न हुई उसकी देह से
बिजली की लपलपाती कौंध निकली
जेल की दीवार लाँघती
तीर की तरह जंगलों में पहुँची
एक-एक दरख़्त, बेल, झुरमुट
पहाड़, नदी,...
आदिवासी लड़की
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
आदिवासी युवती पर
वो तुम्हारी चर्चित कविता
क्या ख़ूबसूरत पंक्तियाँ—
'गोल-गोल गाल
उन्नत उरोज
गहरी नाभि
पुष्ट जंघाएँ
मदमाता यौवन...'
यह भी तो कि—
'नायिका कविता की
स्वयं में सम्पूर्ण कविता
ज्यों
हुआ...
जिस दिन हमने अपना देश खोया
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
बचपन के मैग्नीफ़ाईंग ग्लास में
सबसे पहली झलक में देख पाता हूँ
अपनी ज़मीन के पास
किसी चट्टान पर बैठा हुआ ख़ुद को
मुझे याद...
अगर तुम मेरी जगह होते
ज़रा सोचो, कि
तुम मेरी जगह होते
और मैं तुम्हारी
तो, कैसा लगता तुम्हें?
कैसा लगता
अगर उस सुदूर पहाड़ की तलहटी में
होता तुम्हारा गाँव
और रह रहे होते तुम
घास-फूस...
प्रश्नों के तहख़ानों में
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
देखता हूँ
पहाड़ से उतरकर
आकर शहर
हर कोई मेरी ख़ातिर
कुछ-न-कुछ करने में है व्यस्त
कोई लिख रहा है—
हमारी लड़खड़ाती ज़िन्दगी के बारे में
पी. साईनाथ...
बिचौलियों के बीज
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
माँ!
मेरा बचपन तो
तुम्हारी पीठ पर बँधे बीता—
जब तुम घास का भारी बोझ
सिर पर रखकर
शहर को जाती थीं।
जब भी आँखें खोलता
घास की...
पहाड़ के बच्चे
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
मूल अंग्रेज़ी ‘स्टोन-पीपुल’ का हिन्दी अनुवाद
अनुवाद: अश्विनी कुमार पंकज
पहाड़ के बच्चे
काव्यात्मक और राजनीतिक
बर्बर और लयात्मक
पानी के खोजकर्ता
और आग के योद्धा
पहाड़ के...
राम दयाल मुण्डा की कविताएँ
उनींद
नदी की बाँहों में पड़ा पहाड़
सो रहा है
और
पूछे-अनपूछे प्रश्नों के जवाब
बड़बड़ा रहा है।
अनमेल
लोगों के कहने से
कह तो दिया कि साथ बहेंगे
पर मन नहीं मिल...