मैं पानी का बहना देख रहा हूँ। पानी अपने साथ कितने सपने, यादें और न जाने कितनी गतियाँ बहाये लिये जा रहा है। इसके साथ मुझे भी बहना है, लेकिन डर है कहीं बह न जाऊँ।

आप सोचते हैं डूबने का डर है। नहीं, हो ही नहीं सकता क्योंकि मैं जानता हूँ, डूबकर नहीं मरूंगा। मैंने सैकड़ों लोगों को डूबते देखा है, वो डूबकर नहीं मरते। इस डर से मरते हैं कि ज़िंदा बचने पर क्या होगा?

ज़िंदा बच जाने का भी मुझे डर नहीं क्योंकि मैं ये भी जानता हूँ, मेरे मरने पर कोई स्थानीय मेरी लाश देखकर पुलिस को सूचित नहीं करेगा और न ही पुलिस किसी गोताखोर से मेरी लाश निकलवाकर उसकी शिनाख़्त करवायेगी।

एक बार को मन में आता है आँखें बंद करके छलांग लगा दूँ और नदी के अंतिम छोर तक बहता चला जाऊँ। लेकिन फिर वही बह जाने का डर, न कि बहते जाने का डर।

अनुभव
स्वतंत्र फ़िल्मकार। इस समय एमसीयू, भोपाल से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं। सम्पर्क सूत्र : [email protected]