मैं जाता हूँ
जिसके भी पास
पाता हूँ एक लाश
दुविधा में हूँ
जलाऊँ
या दफ़्न करूँ
पूछना चाहता हूँ
उनका धर्म
हिचकता हूँ
पूछने में
उनके उत्तर की कल्पना
रोक लेती है मुझे
यदि वो नास्तिक हुआ
तो
क्या करूँगा लाश का
छोड़ दूँगा
कम्युनिस्टों के पास
नहीं,
छोड़ दूँगा
रेगिस्तान में
गिद्ध नोचेंगे
खाएंगे
नहीं
गिद्ध अब नहीं होते
क्या करूँ
दुविधा में हूँ
बैठा उदास
लाश के पास
सोचता हूँ
ये मर क्यों नहीं जाती!
©चश्म