चूरन अलमबेद का भारी, जिसको खाते कृष्ण मुरारी।
मेरा पाचक है पचलोना, जिसको खाता श्याम सलोना।

चूरन बना मसालेदार, जिसमें खट्टे की बहार।
मेरा चूरन जो कोई खाए, मुझको छोड़ कहीं नहि जाए।

हिंदू चूरन इसका नाम, विलायत पूरन इसका काम।
चूरन जब से हिंद में आया, इसका धन-बल सभी घटाया।

चूरन ऐसा हट्टा-कट्टा, कीन्हा दाँत सभी का खट्टा।
चूरन अमले सब जो खावैं, दूनी रिश्वत तुरत पचावैं।

चूरन नाटकवाले खाते, उसकी नकल पचाकर लाते।
चूरन सभी महाजन खाते, जिससे जमा हजम कर जाते।

चूरन खाते लाला लोग, जिनको अकिल अजीरन रोग।
चूरन खाएँ एडिटर जात, जिनके पेट पचै नहीं बात।

चूरन साहेब लोग जो खाता, सारा हिंद हजम कर जाता।
चूरन पुलिसवाले खाते, सब कानून हजम कर जाते।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र की कविता 'चने का लटका'

Book by Bhartendu Harishchandra:

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।