पहली बार रोशनी में मैंने खुद को देखा होगा
तुम भी कहीं उजाले में खूब इतराए होगे
पहली बार बारिश ने जब मुझे भिगोया होगा
नन्हा सा बादल तुम पर भी बेवक्त रोया होगा
पहली बार मैंने आईने में खुद को संवारा होगा
तुमने भी चोरी से माथे पर टीका लगाया होगा
जो पहली बार मैंने कोई कविता लिखी होगी
उसी वक्त तुमने भी कोई तस्वीर बनाई होगी
कभी बेकार ज़िद करके यूं नींद ना आई होगी
किसी टूटी ख्वाहिश पर तुम भी सोए नहीं होगे
पहली बार मंदिर में कोई फूल चढ़ाया होगा
तुमने भी सांझ का कोई दीपक जलाया होगा
कभी किसी बात पर मैं भी रो पड़ा होउंगा
मुस्कान तुम्हारे चेहरे से भी काफूर हुई होगी
कितना कुछ चलता रहता है साथ
…
एक ही वक्त पर दो कहानियाँ एक साथ
ज़मीन के दो हिस्सों पर बड़ी हो रही होती हैं
एक होने के लिए!