‘Ja Chuke Log’, a poem by Ritu Niranjan
जा चुके लोग अक्सर
चले जाने के बावजूद
बचे रह जाते हैं जीवन में
वक़्त के जिस्म पर
खुरचे हुए निशानों की तरह
हम कोशिश करते हैं
बार-बार
उन्हें मखमली लम्हों से ढँक लेने की
मगर सिलवटें पड़ते ही
वे फिर उभर आते हैं
हर बार।
दिल अब नहीं दुखता पहले-सा
मगर निशान रह रहकर
याद दिलाते रहते हैं
समय के उस छोर पर छूट गए लोगों की
कभी यूँ ही महसूस होता है
यादों की डिबिया खोल दी हो किसी ने
और मन का आँगन महक उठता है
तुम्हारी सोंधी ख़ुशबू से
और
तुम फिर चले आते हो
हमारे छोटे से अतीत की
नाज़ुक हथेलियाँ थामकर
बिन बुलाए ही
तुम शायद आसमान हो
ख़ूबसूरत बादलों से भरा
नीला आसमान
और मैं
किसी बड़ी-सी नदी की छोटी-सी मछली
सो मेरे हिस्से तुम्हारी परछाई आयी
या फिर
ज़्यादा से ज़्यादा तुम्हें दूर से देख पाने भर जितना सुकून
शुरू से आख़िर तक
तुम नींद में लिखी गयी कविताओं-से हो
जिन्हें मैंने केवल ख़्वाबो में ही रचा
एहसासों की स्याही में डुबाकर
नीम अँधेरी रात में सोचा
आखर-आखर सहेजा
मगर सुबह होते ही
नींद के साथ-साथ कविताएँ भी
होश खो बैठती थीं
शब्द हवा हो चुके होते थे
बस
एहसासों का एक टुकड़ा
तैरता मिलता था दिल में
तुम वही बचा हुआ एहसास हो जानाँ…
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