‘ऐसे नहीं होते कवि’ कहा मेरी
बेटी ने, ग्यारह साल की—
देखती हूँ, बहुत दिनों से नहीं
पूछा आपने, पौधों के बारे में।
छत पर नहीं गए
देखने तारे।
बारिश हुई, इतनी हरी घास उगी,
कैसी चमकती है धूप में, वहाँ
देखा नहीं आपको देखते
उस घास को।
‘ऐसे नहीं होते कवि’
—कहा मेरी बेटी ने।
प्रयाग शुक्ल की कविता 'हमें नहीं मालूम था'