क्षितिज की ओढ़नी पर प्रीत का इतिहास लिखना था
मुझे श्री कृष्ण के संग गोपियों का रास लिखना था
हृदय में जन्म लेती प्रीत का अहसास लिखना था
लिखे हैं गीत पीड़ा के, मिलन मधुमास लिखना था
समय के वेग को भी जीतने का लक्ष्य था मेरा
समन्दर पार तक बढ़ने लगा था कीर्ति रथ मेरा
पुराना शाप निश्चित ही कोई वरदान हो जाता
तुम्हारा साथ पाकर पथ मेरा आसान हो जाता
अगर मेरे जनम दिन पर तुम्हारा फोन आ जाता..
बिरह की वेदना का स्वर भी न होता मुखर शायद
नहीं छूता हृदय भी शोक का ऊंचा शिखर शायद
न कोयल के मधुर स्वर कर्ण को कर्कश ध्वनि लगते
कवल जो जल में शोभित है न मुझको नागफनी लगते
मचलती चांदनी को मैं तिमिर घनघोर न कहता
कदाचित मैं पवन की रागिनी को शोर न कहता
सुलगती आग सा जलता हुआ मौसम नहीं होता
उमर एक वर्ष कम होने का कोई गम नहीं होता
अगर मेरे जनम दिन पर तुम्हारा फोन आ जाता..
तुम्हारे साथ निर्धारित किये थे लक्ष्य जीवन के
कई वर्षों से खंडित हो रहे हैं स्वप्न यौवन के
कई वर्षों से इन आँखों ने अपना व्रत नहीं खोला
तुम्हारे बाद फिर अपने हृदय का पट नहीं खोला
अगर मैं प्रीत के इस मार्ग से अस्थिर जो हो जाता
तो फिर मैं कवि नहीं होता मैं कोई और हो जाता
बिरह की आग में तपकर कदाचित स्वर्ण हो जाता
भले अर्जुन न बन पाता मगर मैं कर्ण हो जाता
अगर मेरे जनम दिन पर तुम्हारा फोन आ जाता..