‘Maut Kyon Nahi Aati’, a poem by Shahbaz Rizvi
अधमरी आँखों का ख़्वाब कैसा होता है?
रोशनी की झुरमुट में आँख क्यों नहीं खुलती?
ज़िन्दगी की चाहत में ख़्वाब क्यों नहीं मरते?
रात के किनारे पर आँख लग भी जाए तो
ज़ेहन के दरीचे में गश्त कौन करता है?
दिल के दश्ते-वीराँ में बारिशों के होने से
रेगज़ार साँसों में रंग लग भी जाए तो
बेकरां तनफ़्फ़ुस को ज़ंग लग भी जाए तो
बे बहाव शहरग को संग लग भी जाए तो
कोहकन की ख़ामोशी शोर क्यों नहीं करती?
मंज़िलो की चाहत में लोग चलते रहते हैं
आँखों के दरीचों में ख़्वाब पलते रहते हैं
पैरों के सभी छाले शोर करते रहते हैं
उम्र ढलती रहती है, चाह मरते रहते हैं
रूह की शिकन फिर भी आह क्यों नहीं करती?
आदमी का मेला है, सर नज़र नहीं आता
रोशनी नहीं मिलती, दर नज़र नहीं आता
क्या अजब मसाफ़त है, दर-ब-दर भटकता हूँ
बस कि चलता रहता हूँ, घर नज़र नहीं आता
रोज़-ओ-शब की ये गर्दिश ख़त्म क्यों नहीं होती?
चैन क्यों नहीं मिलता, मौत क्यों नहीं आती?
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