बुलाने पर भी जब नहीं आते
कठिन बीमारी में एक दिन पकड़ लूँगी बिस्तर।
ख़बर पाते ही जानती हूँ काग़ज़ों के जंगल में ढूँढोगे
पासपोर्ट मिलते ही धूल झाड़कर जाओगे वीसा लेने
ख़रीदोगे टिकट
बीहड़ व्यस्तताओं को विशाल महानगर की हवा में
रुई की तरह उड़ाते हुए
उलझनों को हल्के हाथ ठेलते हुए
पहली फ़्लाइट से ही उतरोगे यहाँ जानती हूँ
बिखरे-उखड़े शहर ढाका में।
देखोगे घर की सीढ़ियों पर बिछा हुआ लाल गलीचा
घर में घुसते ही पाओगे गंध पुराने बुख़ार और दवा की
अगर भरपूर साँस लोगे तो मिलेगी एक गंध
अनचीन्हे प्रेम की।
बीमारी हो कठिन
या कट जाएँ हाथ-पैर ट्रक के नीचे
जिगर में राइफ़ल की गोली
गुर्दे ख़राब
लकवा, रक्त में कैंसर
सहन कर लूँगी कोई भी रोग अगर तुम आओ
पास बैठकर अगर प्यार से छुओ दुर्बल हाथों को
दूर हो जाएगा दुःसाध्य रोग
मन ही मन हो जाऊँगी स्वस्थ
उठूँगी, चल पड़ूँगी
देखूँगी खिड़की में छाया नीला आकाश।
इतने रोग में न पिघलता हो पत्थर
तो फिर मुत्यु ही आए
मृत्यु के बाद मुखाग्नि देने
आना ही होगा तुम्हें, खुली हुई दो आँखों को
काँपती उँगलियों से मूँदने
आग में जलाने—
क्या तुम रह सकते हो आए बग़ैर?
तस्लीमा नसरीन का आत्मकथ्य 'कैसा है मेरा जीवन'