पिता
इस साल जनवरी में
नहीं रहे मेरे पिता के पिता
उनके जाने के बाद
इन दिनों
पिता के चेहरे को देखकर
समझ रहा हूँ पिता के जाने का दुःख
दुःख, पसर गया है पिता की पुतलियों में
जिसे देखकर भयभीत हूँ मैं
दुःख, उपस्थित है पिता की दिनचर्या में
जिसने साँझ की परिभाषा बदल दी है
मैं देखता हूँ
दीवार पर टंगी तस्वीरों को
और सोचता हूँ—
मनुष्य सम्बन्धों की एक शृंखला में जन्म लेता है
और उसी में मरता है
जगह का ख़ालीपन
भरा जा सकता है सामानों से
लेकिन मन की रिक्तता मनुष्य ही खोजती है।
बह गए सारे बिम्ब
“कुछ नहीं बचा मालिक
बह गया सब कुछ
डूब गया सब कुछ
खेत-पथार
गाय-गोरु
घर-गृहस्थी
डेरा-बथान…
किसी तरह बच गए
हम तीन जीव
बाक़ी सब को लील गई बाढ़”
कहते-कहते फफक-फफककर रो पड़ा बुज़ुर्ग
साथ में रो पड़ी उसकी पत्नी
और उसका जवान बेटा आँसुओं को छुपाते हुए
देखने लगा पानी की दिशा में
जहाँ दूर-दूर तक दिख रहा है अथाह पानी
और पानी के साथ-साथ बहे जा रहा है मन
डूब गया है गाँव
मिट गयी दिशाएँ
बह गए सारे बिम्ब
सूरज भी डूब रहा है धीरे-धीरे…
आकस्मिकता
माफ़ कीजिए
लेकिन आपकी सुविधा का पूरा ख़्याल है मुझे
आप बेफ़िक्र होकर सो सकते हैं
मैं आपकी नींद का ध्यान रखूँगा
बस, मुझे थोड़ी-सी जगह चाहिए
जहाँ बैठकर
नींद को समझाते हुए
मैं अपनी यात्रा पूरी करना चाहता हूँ
नहीं, नहीं
इस तरह से मत देखिए
मैं कोई चोर नहीं हूँ
यक़ीन मानिए आप सुरक्षित हैं
आपका सामान सुरक्षित है
मैंने भी उतना ही भुगतान किया है
जितना आपने किया है
समस्या यह कि मेरी अधिकांश यात्राएँ
आकस्मिक ही रही हैं
आकस्मिकता आदमी को लाचार बना देती है
और हर लाचार आदमी आज संदिग्ध है।
चेतावनी
कुत्तों से मुझे बहुत डर लगता है
जगह-जगह दीवार पर लिखी चेतावनी ने
और भी पुख़्ता किया है मेरे इस डर को
इसे अब मेरी बेवक़ूफ़ी समझिए या कुछ और
जब भी कोई कुत्ता
खदेड़ रहा होता है किसी बिल्ली को
मैं चाहता हूँ बिल्ली करे पलटवार
और उसके डर से भाग जाए कुत्ता
लेकिन ऐसा नहीं होता है
इस उम्मीद में कि
एक दिन बिल्लियाँ झुंड में लौटेंगीं एक साथ
और कुत्तों पर हमला बोलेंगीं
और फिर मैं निकलूँगा
हाथ में पुताई का सामान लिए
और तमाम चेतावनियों पर पोत दूँगा काला रंग
मैं पाल रहा हूँ बिल्लियाँ
सदियों से
जब सत्ताएँ पाल रही हैं तरह-तरह के प्यादे
अपने डर से जीतने के लिए,
मैं उम्मीद पाल रहा हूँ।