एकमात्र रोटी

पाँचवीं में पढ़ता था
उमर होगी कोई
दस एक साल मेरी।
एक दिन स्कूल से आया
बस्ता पटका, रोटी ढूँढी
घर में बची एकमात्र रोटी को
मेरे हाथ से कुत्ता ले गया।

जब मैं रोया तो
माँ ने मुझको पीटा।
मेरे समझ नहीं आया कि
माँ को कुत्ते की पिटाई करनी थी
पीट दिया मुझे
और फिर ख़ुद भी रोने लग गई
मुझे पुचकारते हुए।

लेकिन अब मेरे समझ आया
कि माँ उस दिन क्यों रोयी थी?
दरअसल वह मुझे नहीं
अपनी क़िस्मत को पीट रही थी
कि लाल भूखा रह गया है
एक रोटी थी जो घर में
वो भी कुत्ता ले गया है!

तुम्हारे साथ जीवन

जब तुम साथ थे
सूरज हमारे साथ निकलता था
जब तुम साथ थे
चाँद हमारे साथ चलता था
जब तुम साथ थे
तारे हमारे साथ टहलते थे
जब तुम साथ थे
जीवन हमारे साथ था
तुम्हारे बाद
अब मृत्यु हमारी सहयात्री है।

विजय राही
विजय राही युवा कवि हैं। हिन्दी के साथ उर्दू और राजस्थानी में समानांतर लेखन। हंस, मधुमती, पाखी, तद्भव, वर्तमान साहित्य, कृति बहुमत, सदानीरा, अलख, कथेसर, विश्व गाथा, रेख़्ता, हिन्दवी, कविता कोश, पहली बार, इन्द्रधनुष, अथाई, उर्दू प्वाइंट, पोषम पा,दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, राष्ट्रदूत आदि पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग और वेबसाइट्स पर कविताएँ - ग़ज़लें प्रकाशित। सम्मान- दैनिक भास्कर युवा प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार-2018, क़लमकार द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (कविता श्रेणी)-2019 संप्रति - राजकीय महाविद्यालय, कानोता, जयपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत