Tag: Hunger

Hariram Meena

हरिराम मीणा की क्षणिकाएँ

'आदिवासी जलियाँवाला एवं अन्य कविताएँ' से 1 जो ज़मीन से नहीं जुड़े, वे ही ज़मीनों को ले उड़े! 2 यह कैसा अद्यतन संस्करण काल का जिसके पाटे पर क्षत-विक्षत इतिहास चिता पर जलते आदर्श जिनके लिए...
Gaurav Bharti

मैं ख़ुद को हत्यारा होने से बचा रहा हूँ

बहुत ही लापरवाह रहा हूँ मैं अपनी देह को लेकर पहनने-ओढ़ने का शऊर भी नहीं रहा कभी मुझे ध्यान नहीं रहता कब बढ़ जाते हैं मेरे नाख़ून झड़ने लगे...
Hungry, Poor

फीकी रोटी

बचपन में मैं मिट्टी खाता था, बड़ा अच्छा लगता था इसका स्वाद फिर बड़ा हुआ तो मालूम हुआ खाने के लिए मिट्टी नहीं रोटी होती है और रोटी ज़मीन पर...
Lockdown Migration

उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है

1 वे हमारे सामने थे और पीछे भी दाएँ थे और बाएँ भी वे हमारे हर तरफ़ थे बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग जो अपने...
Ram Dayal Munda

राम दयाल मुण्डा की कविताएँ

सूखी नदी/भरी नदी सूखी नदी एक व्यथा-कहानी जब था पानी तब था पानी! भरी नदी एक सीधी कहानी ऊपर पानी, नीचे पानी। विरोध उसे बाँधकर ले जा रहे थे राजा के सेनानी और नदी छाती पीटकर...
Nishant Upadhyay

खिड़की और भूख

"मेरी सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है।" बचपन से जब भी इस गाने को सुनते थे, हमारी आँखों के आगे...
Drought, Femine, Bengal

मरेंगे साथ, जियेंगे साथ

पगडण्डी, पतली-दुबली लजीली। उस पर हमारे पैरों का बोझ। हरियाली में जाकर वह लजवंती खो गई। छेवड़िया ऊँघ रहा था। हवा सनसना रही थी।...
Nitesh Vyas

कविताएँ – मई 2020

चार चौक सोलह उन्होंने न जाने कितनी योनियाँ पार करके पायी थी दुर्लभ मनुष्य देह पर उन्हें क्या पता था कि एक योनि से दूसरी योनि में पहुँचने के कालान्तर से...
Vijay Rahi

एकमात्र रोटी, तुम्हारे साथ जीवन

एकमात्र रोटी पाँचवीं में पढ़ता था उमर होगी कोई दस एक साल मेरी। एक दिन स्कूल से आया बस्ता पटका, रोटी ढूँढी घर में बची एकमात्र रोटी को मेरे हाथ से...
Tribe, Village, Adivasi, Labour, Tribal, Poor

ऊँचाइयाँ, विज्ञान की भावना, भूख

ऊँचाइयाँ गुरुत्वाकर्षण पदार्थो के गिरने का अद्वितीय नियम है। हर चीज़ फिर गिरती है, मज़दूर की तरह, नीचे की तरफ़। पटरियों पर चौड़े हाईवे पर नदियों के भीतर गटर के अन्दर कारख़ानों में खदानों में पाखानों में, पर उसके लिए एक पूर्वशर्त है 'ऊँचाइयाँ' इमारतों...
Madan Daga

क्षणिकाएँ : मदन डागा

कुर्सी कुर्सी पहले कुर्सी थी फ़क़त कुर्सी, फिर सीढ़ी बनी और अब हो गई है पालना, ज़रा होश से सम्भालना! भूख से नहीं मरते हमारे देश में आधे से अधिक लोग ग़रीबी की रेखा के...
Harish Bhadani

रोटी नाम सत है

रोटी नाम सत है खाए से मुगत है ऐरावत पर इन्दर बैठे बाँट रहे टोपियाँ झोलियाँ फैलाए लोग भूग रहे सोटियाँ वायदों की चूसणी से छाले पड़े जीभ पर रसोई में लाव-लाव भैरवी...
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