अपने ही मर्द द्वारा
बनाया गया पत्थर उसे

अपने ही मर्द ने
छोड़ दिया
जानवरों के बीच वन में

किया गया उसे
अपने ही मर्द के सम्मुख नग्न
देखा गया अपने ही मर्दों द्नारा
निर्वस्त्र होते उसे

हर बार उसकी ही छाती पर
होते रहे युद्ध
हर बार वही वही
होती रही आहत

हर बार लाया गया
हरम तक उसे
और परोसी गई हर बार
व्यंजनों की तरह वही
हर वक़्त… हर जगह।

प्रेमशंकर रघुवंशी
जन्म 8 जनवरी 1936 को बैंगनिया, सिवनी मालवा तहसील, हरदा, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनकी कुछ प्रमुख कृतियां-आकार लेती यात्राएं, पहाड़ों के बीच, देखो सांप : तक्षक नाग, तुम पूरी पृथ्वी हो कविता, पकी फसल के बीच, नर्मदा की लहरों से, मांजती धुलती पतीली (सभी कविता-संग्रह), अंजुरी भर घाम, मुक्ति के शंख,सतपुड़ा के शिखरों से (गीत-संग्रह) हैं।