तुमने कहा था एक बार
गहरे स्वप्न में मिलोगी तुम
कितने गहरे उतरूँ स्वप्न में
कि तुम मिलो?
एक बार मैं डूबा स्वप्न में इतना गहरा
कि फिर उभरा ही नहीं
तब से सब कहते हैं
मैं जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ
मैं देखता हूँ एक बच्चा
पगडण्डी पर भागता जा रहा है
एक बुढ़िया
पानी की बाल्टी लिए चली जा रही है
एक सुहागन
नदी में नहा रही है
एक मज़दूर
खोद रहा है ज़मीन
एक नवजवान
हाथ मल रहा है
और एक लड़की
न जाने किसकी राह तक रही है
मैं किसी पुराने मंदिर की देव प्रतिमा-सा
चटकता हूँ
मेले में बिछड़े किसी बुज़ुर्ग-सा
भटकता हूँ
मैं दोपहर की धूप में बीच आँगन पड़ी
जूठी थाली की तरह ऊब रहा हूँ
मैं अपने स्वप्न में ही डूब रहा हूँ
इस उम्मीद के साथ कि तुम गहरे स्वप्न में मिलोगी
बहेलिए की एड़ी में धँसे किसी तीर की तरह…
अनुराग अनंत की कविता 'आख़िरी इच्छा'